कहानी तो कहानी ही होती है कभी सच्चाई बताती तो कभी कल्पना मे ले जाती। दादी-नानी की कहानियाँ वैसी ही लेखनी का कमाल होती है कहानियाँ। लेखनी मे अधिकतर सच्चाई को मिर्च-मशाले का छौंक लगा कर बेहतरीन बना दिया जाता है। चलिए एक सच्ची और कल्पना के मिश्रण से ओत-प्रोत इस कहानी का आनन्द लेते है। नाम काल्पनिक ही रखना सही पात्रो का।
राज घराने मे खुशियो का माहौल है। महल मे गाजे-बाजे,तुरही,शहनाई गुज रही है। महल की साज-सज्जा तो देखो क्या कहने मानो आज सारा स्वर्ग घरती पर ही विराज रहाँ है। महल मे लोगो का आना-जाना हो रहाँ है। चहल-पहल पकवानो की महक,हँसने, नाचने- गाने की आवाजे। हाथी-घोडो को भव्य सज्जाया गया है। महल मे इत्र व फूलो की भिनी-भिनी महक आने वाले हर आगंतुक को बरवस अपनी और खिचती नजर आ रही है। आने वाले प्रत्येक मेहमान की खुब आवभगत हो रही है। महल के सभी दास-दासिया सुन्दर पौशाको मे सज्जे हुए। महिलाओ ने लहंगा साडी,पुरुषो ने अजकन- धोती,सिर पर तुरे दार पकडी वाॅह क्या लग रहे है सब के सब। सब मे सुन्दरता का वास हुआ जा रहाँ है।
इतना सब ही नही यह देखो दुल्हा केसरी वाने मे खुब भव रहाँ है। महिलाए दुल्हे को खिच रही है कि इसे शकुन के नेक-चार करने चलना है। दुल्हे को पाटिये पर बैठा कर सुहागिने मंगल गाती हुई दुल्हे को तेल चढाने की रस्म निभा रही है। एक-एक सुहागिन दुल्हे के पास आती है। तेल से भरे पात्र से दुर्वा डुबो कर उस तेल से भिनी दुर्वा को दुल्हे के मांथे ,हाथ-पाव पर लगा कर मंगला गीत गाती जा रही है। सब सुहागिनो ने बारी-बारी से दुल्हे के तेल चढाया है।तेल चढाने के बाद दुल्हे को उबटन लगाने की तैयारी शुरु हो रही है। एक पात्र मे उबटन ( तेल,हल्दी,दुध,दही,शहद,आटा,चंदन आदि सब मिला कर तैयार लेपन ) बनाया जा रहाँ है। उबटन अब दुल्हे के शरीर मुँह,हाथ,पाव पर लगाया जाएगा। सभी सुहागिने मंगला गीत गाती हुई उबटन लगा कर दुल्हे का रुप निखार रही है। उबटन लगने के बाद दुल्हे के भाई-मित्र सब दुल्हे के पास आ कर हँसी ठिठोली कर रहे है, साथ मे उस उबटन को मसल-मसल कर पुरे शरीर पर रगड कर रुप निखारने लगे है।
दुल्हे के तेल-उबटन की रस्म पुरी हो गई अब दुल्हे को स्नान करवा कर सुन्दर नए वस्त्र धारण करवाए जाएंगे। इस लिए दुल्हा अब स्नान करके नए वस्त्र पहन कर सुन्दर अचकन-धोती,तुर्हीदार पगडी ( पगडी के एक सिरे को थोडा छोड कर बाकि पगडी को सिर पर बांधते है और पगडी का आखिरी छोर कुछ लम्बाई लिए पिछे की तरफ लटकता रहता है। इस तरह की पगडी को तुर्हीदार पगडी कहते है। आजकल पगडी केवल विवाह के वक्त ही पहनी जाती है। विवाह के समय दुल्हे-दुल्हिन के परिवार के सभी पुरुष पगडी धारण करते है। वस्त्र धारण करने के बाद दुल्हे को गहने शेहरा कमर पर तलवार टांग कर पैरो मे जूती पहनाई जाती है। वाॅह जी वाॅह देखो कितना सुन्दर लग रहाँ है दुल्हा। दुल्हे के तैयार होने के बाद भाभियाँ दुल्हे की आँखो मे काजल लगाने की रस्म निभाती है।
दुल्हा और दुल्हे के सभी बाराती खुब सज्ज-धज्ज कर तैयार हो गए। सभी को देख कर लग रहाँ है जैसे स्वर्ग के सभी देवी-देवता आज घरती पर विचरने आये हुए है। दुल्हे के माता-पिता राजा जी और रानी माँ को तो देखो कितने सुन्दर दिख रहे है। सब सज्ज-सबर कर बारात मे जाने को तैयार हो चुके है। इधर पंडित जी बारात रवांगी के लिए मंत्रोचारण करके बारात रवाना करने की रस्म हो रही है। अब वह देखो सफेद जग-मंग करता सुन्दर कद-काठ का घोडा उसे भव्यता से सजाया गया है। घोडे की पीठ पर मोती-नगिने के वर्क से सजा मखमली वस्त्र लगा कर तैयार किया गया है। दुल्हे को घोडे पर बैठाने से पहले घोडे को दुल्हे की बहन दाना-पानी खिला कर ताकतवर बना ने की रस्म निभाने आई है।
दुल्हे की बहनो ने हाथ मे थाल लिया हुआ है उसमे भिगे चने भरे हुए है बहने आ कर घोडे को वह भिगे चने खिलाती है और घोडे की बाग-गुँथाई ( घोडे के गर्दन के बालो को गुँथना-चोटी बनाना ) कर रही है। महिलाए मंगला गीत गाते हुए मंगलाचरण करती जा रही है। दुल्हे को घोडे पर बैठा कर बारात रवाना होने वाली है। गाजे-बाजे बज रहे है,महिलाओ के मंगल गीत गुँज रहे है। दुल्हे के भाई-बंधु,मित्र सभी बाराती बारात रवाना करने से पहले घोढे के आगे नाच-गा कर माहौल को खुशनुमा बना रहे है। नाचते गाते मंगलाचरण के साथ बारात रवाना हुई। सभी बाराती नाच-गा कर धुम मचाते नगर की सडको से निकल रहे है। नाचते-गाते बारात दुल्हिन के दवार तक पहुच गई। दुल्हिन के भाई-बंधु,सखियाँ सभी बारात की आगवाणी के लिए दौडे चले आ रहे है।
इधर दुल्हिन भी दुल्हे की तरह ही सभी रस्मे तेल चढाई,उबटन लगाना, स्नान आदि करके सुन्दर नए वस्त्र धारण करना इन सभी रस्मो को निभाते हुए ही दुल्हिन को सज्जा-सवार कर तैयार किया गया है। दुल्हिन ने लाल रंग के लहंगा-चुनरी पहन रखी है बहुत सारे गहने दुल्हिन के तन की शोभा बठा रहे है। बारात दुल्हिन के निवास के बाहर पहुच चुकी है। दुल्हिन को उसकी भाभिया,बहने. सखियाँ दुल्हे के दर्शन करवाने महल की छत पर ले जा रही है। दुल्हिन को महल की छत पर ले जाकर दुल्हे और बारात के दर्शन करवाए जा रहे है। दुल्हिन शर्माते हुए अपने दुल्हे और बारातियो को देखती है। दुल्हे और बारात के दर्शन करने के बाद दुल्हिन को वापस महल मे छत से नीचे ले जा रहे है।
इधर दुल्हिन की तरङ के सभी लोग दुल्हे की तरफ के लोगो से मिलने दवार पर पहुच गए है। दुल्हिन के माता-पिता भी खुब सज्ज-सबर कर आए है। दुल्हिन के परिवार वाले दुल्हे के परिवार वालो से गले मिल कर मिलनी कर रहे है। मिलनी करते समय दुल्हिन के परिवार के लोग दुल्हे के परिवार के लोगो को मिलनी की रस्म मे उपहार भेट कर के उनका स्वागत कर रहे है। मिलनी की रस्म पुरी होने पर दुल्हे को बारात पांडाल की तरफ ले जाने के लिए दुल्हे के बाई,जीजा,मित्र सभी आते है। सब मिल कर दुल्हे को बारात स्वागत स्थल के पांडाल की तरफ ले जाते है। बारात पांडाल के दवार पर दुल्हिन की बहन,सखियो ने एक रिबन से दवार को सील कर रखा है। दुल्हे को बारात पांडाल के भीतर जाने के लिए पहले इस रिबन को काटना पडेगा तभी वह भीतर जा पाएगा।
दुल्हिन की बहन व सखियाँ अपने होने वाले जीजा के संग थोडी हँसी ठिठोली करने के लिए रिबन काटने के लिए दुल्हे से भेट मांगती है। पहले तो दुल्हा इस भेट को देने मे आना कानी करता है। दुल्हे के संग आए उसके भाई,मित्र सब थोडा भाव खाते है। आखिर कुछ देर की नौक-झौक के बाद दुल्हा अपनी जेब से रुपये निकाल कर दुल्हिन की बहनो व सखियो को भेट देता है तब दुल्हिन की बहने व सखिया दुल्हे को रिबन काटने के लिए कैंची देती है। दुल्हे और उसकी सालियो के बीच होने वाली इस रस्म को रिबन कटाई की रस्म कहते है। दुल्हे दवारा सालियो को रिबन कटाई पर दी जाने वाली भेट को रिबन कटाई की नेंग देना कहते है।
बडी धुमधाम से विवाह समपन्न होता है। विवाह की सभी रस्मो को पूर्ण होने के पश्चात वर पक्ष वाले वधु पक्ष के लोगो से विदा लेते है। दुल्हा-दुल्हन को सजी धजी गाडी मे बिठा कर बारात रवानगी लेती है। बारात अपने नगर मे प्रवेश करती है,गाजे-बाजे के संग बारात महल की दहलीज पर पहुचती है। घर की दहलीज पर नव-दम्पति का स्वागत करने दुल्हे की माता जी आरती थाल लेकर सामने आती है। दुल्हे की माता दुल्हा-दुल्हन दोनो की आरती उतारती है फिर दोनो की नजर उतार कर निछरावल करते हुँ दुल्हे के पिता घर मे प्रवेश करते है उनके साथ ही दुल्हा-दुल्हन व सब बाराती घर के भीतर आते है।
दुल्हा-दुल्हन को बिठा कर घर आई बारात को नास्ता पानी करवाया जाता है। महिलाए मंगलाचरण के गीत गाती हुई सभी बारातिया की वापसी पर बधाई देती है। दुल्हा-दुल्हन से अपने कुल देव-देवी की अर्चना करवाई जाती है। रात्रि मे महिलाए गीत गाती हुई दुल्हा और दुल्हन को सुहाग सेज्ज पर बैठा कर मंगल गीत गाती है। इस तरह सभी रस्मो के पूर्ण हो दजाने पर बाराती-रिस्तेदार आदि अपने घर को लौट चलते है। दुल्हन के पग-फैरे की रस्म के लिए उसे उसके मायके भेजा जाता है। अब दुल्हा-दुल्हन अपनी गृहस्थ मे जीवन जीते है।
शादी के कई सालो बाद उस राज्य पर विदेशी आक्रांताओ ने आक्रमण कर दिया तो राजा जी अपनी सेना ले कर दुश्मनो को खदेडने के लिए निकल पडते है। उनकी वहाँ वीर गति होती है। महल मे हाहाकार मच जाता है। राज परिवार मे मातम छा जाता है। रानी साहिबा को विधवा के वस्त्र पहनाए जाते है। राजा जी की मृत्यु के बाद रानी का मन उदास रहने लगता है। एक दिन उन विदेशी आक्रमण कारियो ने महल के कुछ लोगो को खरीद लिया जाता है। वह खरीदे हुए लोगो ने रानी को उनकी दासियो सहित चार धाम की यात्रा के लिए योजना बनाई। यात्रा के नाम पर धोखे से रानी व दासियो को शत्रु खेमे मे पहुचा दिया गया।
रानी और दासियो को दुश्मनो के आगे अपना आत्मसमर्पण करना पडा। अब वह शत्रु के हाथ गुलामी की बेडियो मे पड गई। इस तरह से जो कभी राज करती थी आज वह गुलामी करके जीवन जीने को मजबूर हो गई। कर्म का लेख भला कैसे मिट सकता है।
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