शालिनी की माँ का देहांत हुए कुछ ही समय बिता था कि उसके पिता जी उसके लिए दुल्हे की तलाश मे निकल पडे। शालिनी के एक करीबी रिश्तेदार ने एक लडका उनको बताया शालिनी की शादी के लिए। अब शालिनी के पिता ने उस लडके और उसके परिवार की कोई खोज-खबर नही करी बस तुरंत रिस्ता तय कर दिया और कुछ समय बाद उसकी शादी भी कर दी गई। शालिनी बहुत भोली-भाली लडकी थी। अब शादी के बाद शालिनी डोली मे बैठ कर ससुराल पहुची। वहाँ उसका कोई खास धुम-धाम से स्वागत नही किया गया। शालिनी को ससुराल मे कदम रखते ही उसके जीवन मे दुखो का पहाड टुट पडा। जैसे ही शालिनी के पति ने घर मे कदम रखा गठजोडी को फैंक कर अपने रिस्तेदारो व दोस्तो के पास चला गया। शालिनी के पति का नाम सतीश था। सतीश की एक चाची बेचारी शालिनी को एक कमरे मे ले गई वहाँ उसे बैठा दिया।
दोपहर को 1-2 बजे वह डोली ससुराल पहुची थी। अब शाम के 8 बज चुके थे सर्ज विदा हो गया था चंदा का आगमन हुआ। शालिनी को किसी ने पानी तक नही पुछा। ना ही कोई उसके पास आ कर बैठा। बेचारी शर्माई घबराई सी चुप-चाप कमरे के बाहर देखती रही रिस्तेदारो की विदाई हो रही थी कई रिस्तेदार अभी रुक गए थे कुछ रवाना हो गए थे। अब फोटो ग्राफर आया उसने कहाँ मुझे दुल्हन के कुछ फोटो ग्राफ निकालने है आप दुल्हन को तैयार कर दिजीए। तब शालिनी की बडी नन्द आई और उसको तैयार होने के लिए बोल गई। तभी शालिनी की सास ने उस कमरे मे प्रवेश किया और अपनी बेटी को सम्बोधन कर के कहने लगी इस बडे बाप की बेटी से कह दे इसका मेरे घर मे कोई काम नही क्योकि इसके पिता ने हमे लाखो रुपये दहेज मे नही दिये। इसे मेरे घर मे रहना है तो अपने अमीर बाप से लाखो रुपये ला कर दे देगी। उन रुपयो से हम मिडिकल स्टोर खाल देंगे (शालिनी के देवर के लिए )
शालिनी मन ही मन बहुत डर गई थी। बेचारी सोच रही थी ये सब क्या हो रहाँ है। एक तरफ उसका पति सतीश अभी तक उसके पास नही आया था। कुछ अटपटा लग रहाँ था उसे मगर वह करती भी तो क्या। चुप-चाप तैयार हो कर बैठ गई। फोटो ग्राफर ने कुछ फोटो निकाले।अब उस फोटो ग्राफर ने सतीश को भी बुला लिया था। सतीश अनमने मन से बैठा एक आदि फोटो निकलवाई और फिर उठ कर वापस अपने रिस्तेदारो की महफिल मे जा बैठा। अब दुल्हन को सुहाग सैज पर ले जाया गया । काफी देर बाद शालिनी की नन्द पकड कर सतीश को कमरे मे लाई। कमरे मे आकर सतीश चुप-चाप बैड पर आकर लेट गया शालिनी से कुछ नही बोला। शालिनी सब कुछ देख रही थी। अब कुछ देर बाद सतीश ने कडकते हुए शालिनी से कहाँ अब ये तेरा नाटक खत्म कर और लाईट बंद कर दे जाकर मुझे नींद आई है। शालिनी उठी और लाईट बंद करके आई। अब शालिनी की नींद तो पुरी तरह से उड गई थी। ऐसे ही शालिनी लैटी रही।
सुबह के 5 बज गए थे। शालिनी ने देखा घर के लोगो की आवाजे आनी शुरु हो गई थी। शालिनी ने सोचा अब वह और लेटी रही तो ससुराल वाले ना जाने क्या सोचेगे उसके बारे मे इस लिए तुरंत उठ गई। सोचा जल्दी से नहा-धो कर तैयार हो जाऊ। शालिनी तैयार हो कर बैठी थी। सब लोग भी तैयार हो गए थे। चाए पानी की व्यवस्था हो गई थी। अब सतीश भी उठ गया था। आस-पडौस की महिलाए बहु को देखने आई शालिनी को वहाँ ले जाया गया जहाँ सब महिलाए बैठी थी। सबने बहु को देखा और कहने लगी बहु तो बहुत सुन्दर है। सब सतीश को बधाई देने लगे अरे बेटा तुम बहु तो बहुत ही सुन्दर लाए हो। शाम के समय पडौस मे ही सतीश के एक दोस्त की शादी थी वहाँ का निमंत्रण आया हुआ था। शालिनी की सतीश की माँ तैयार हो रही थी शादी मे जाने के लिए। तब पडौस की महिलाए कहने लगी बहन जी आज तो सतीश और शालिनी को भेजो शादी मे नया जोडा है। इनको भेजना उचित रहेगा। सतीश को समझा कर भेजा सतीश और शालिनी को शादी मे।
अगले दिन सतीश ने बहाना बनाया की उसकी डयूडी आई है इस लिए 2-3 दिन के लिए बाहर जाना पडेगा। अब शालिनी ने चुपी तौडी और बोली अभी तो हमारी शादी हुई है और आप जा रहे हो। मेरा मन कैसे लगेगा। तब सतीश बोला क्या इतने साल मेरे साथ ही बंधी बैठी थी नाटक बंद कर चुप-चाप अपने काम से काम रख मेरे किसी भी काम मे अपनी टाँग मत अडाना बरना तेरे बाप के घर भेज दुगा। ॅ-3 दिन बाद सतीश आया रात के 10 बजे थे वह शालिनी के पास नही आया और अपनी बहनो जीजो से बाते करके बाहर वाले कमरे मे ही सो गया। इधर शालिनी को सतीश की आवाज सुनाई दी तो सोचने लगी अभी सतीश कमरे मे आएगा मगर नही आया। अगले दिन सुबह शालिनी के पीहर से फोन आया कि उसके लेने भईया आज आ रहे है। शालिनी मन मे खुश हुई चलो जब पीहर जाऊगी तब सतीश से मुलाकात कर लुगी।
अब शाम को शालिनी के भईया आए शालिनी और सतीश को ले जाने। पर सतीश की माँ ने कहाँ सतीश नही जाएगा उसने मुझे कह दिया है मै शालिनी के संग नही जाऊगा। अब शालिनी के भईया ने सतीश से बात करी कि शादी के बाद दुल्हा और दुल्हन को संग जोडे से ही जाना होता है। ऐसे मे अकेली शालिनी को कैसे ले जाऊ। घर मे सब की डाट पडेगी। बहुत समझाने पर सतीश तैयार हुआ जाने को मगर सतीश के माता-पिता को अच्छा नही लगा सतीश का जाना। जब वे चलने लगे तो सतीश की माँ शालिनी के भईया से बोली देखो बेटा तुम शालिनी को ले जाने आए हो शालिनी को 15-20 दिन अपने घर रखना जल्दी ही मत भेज देना। सतीश को कहाँ तु कल ही वापस आ जाना।
जब शालिनी सतीश भईया के संग घर पहुचे तब शालिनी के परिवार के सब लोगो ने बहुत खुशी से सतीश का स्वागत किया। खुब खातेदारी हुई सतीश की ससुराल मे उन्हे शहर के फैमस स्थलो पर धुमाने ले गए। ऐसे करते अगले दिन सतीश तैयार हो गया अपने घर वापस जाने के लिए शालिनी के पापा व परिवार वालो ने उसे रोकना चाहा मगर नही रुका।अब शालिनी की सहेलियाँ व पडौस की महिलाए शालिनी से मिलने आई और सब ने कहाँ शालिनी के चेहरे पर खुशी नजर नही आ रही। शादी के बाद तो सब लडकिया बहुत चहकने लगती है मगर शालिनी बुझी-बुझी सी दिख रही है। शालिनी ने मोका देख कर अपनी भाभी से सारी बात बताई कैसे सतीश उससे कटे कटे रहे कोई बात नही कीफिर शालिनी की भाभी ने कहाँ हो सकता है कोई बात हो। कई बार लडको की संगत गलत होती है। इस लिए तेरे संग ठंग से बात नही करी।
15-20 दिन होने पर शालिनी को ससुराल जाना पडा। अब शालिनी की कहानी मे दर्द की घडी आनी शुरु हुई। सतीश अपनी मर्जी से घर आता उसे कोई मतलब नही शालिनी भुखी बैठी इंतजार करती रहती। घर के सब लोग खाना खा कर सोने चले जाते। सतीश घर आता शालिनी गर्म खाना बना कर उसे खिलाती खुद खाती। रसोई का काम खत्म करके कमरे मे जाती तब तक सतीश नींद ले चुका होता। इधर उसकी सास रोज ताने देती खुश खबरी नही सुना रही तेरे मे कोई कमी है तो डाॅक्टर के पास ले चलती हुँ। नए-नए बहाने ढुंढकर शालिनी को ताने मारने लडाई झगडा करना उसकी सास का काम था। रोज लडाई झगडा शालिनी का जीवन दुखो मे घिर गया।
जैसे तैसे करके सतीश शालिनी से बोलने तो लगा मगर उसका ध्यान नही था शालिनी मे बस जैसे कोई मजबुरी मे हो। अब शालिनी को लगने लगा शायद सतीश उससे प्यार करने लगेगा मगर एक दिन तो हद ही हो गई जब सतीश शालिनी के कहने पर वैष्णो देवी के मंदिर जाने के लिए शालिनी से रुपये लेने आया तो उसकी सास का कलह शुरु मौज मार काम तेरा बाप करेगा। शालिनी ने जल्दी से अपने कुछ रुपये सतीश को दे कर आई और काम करने लगी पर उसकी सास ने उसे धका दे दिया और कहने लगी मेरी रसोई मे पाव मत रखना समझी। शालिनी मना करने पर भी रसोई मे सफाई करने लगी तो उसकी सास ने उसे धका देकर रसोई से बाह निकाल दिया। तब सतीश ने कहाँ क्यो हल्ला मच्चा रहे हो। करने दो इसे काम। तब शालिनी की सास ने कहाँ हा अब तु अपनी पत्नि का गुलाम बन गया। फिर सतीश बोला इसमे गुलाम वाली कौन सी बात है। हाँ मै अभी इसे घर से निकलवाती हुँ।
शालिनी की सास तुरंत घर से निकल गई और अपने बेटी जबाई को बुला कर लाई। शालिनी की नन्द-नन्दोई ने आकर सतीश को एक कमरे मे ले गए और कमरे मे सतीश उसकी माँ बहन और जीजी चारो जने शालिनी को कमरे मे नही जाने दिया कमरे को अन्दर से बंद कर लिया। अब शालिनी को तो कुछ भी समझ नही आ रहाँ था कि क्या हो गया। वह मन ही मन बहुत घबरा रही थी। 2 घण्टे बाद शालिनी की सास कमरे से बाह निकल कर आई और शालिनी से बोली जल्दी से सब के लिए खाना बना दे। अब शालिनी खाना बनाने लगी खाना बन कर तैयार हो गया मगर अभी भी सब कमरे के अंदर बैठे थे कमरा अन्दर से बंद था। लगता है कमरे मे मिटिंग चल रही है।
लगभग 4 घण्टे बाद कमरो खुला अन्दर से सब बाहर आए मगर सतीश बाहर नही आया था शालिनी जल्दी से सब के लिए खाना परोसने लगी। सतीश को उसकी बहन बुलाने गई तब सतीश आया। सबने खाना खा लिया शालिनी सबके झुठे बर्तन उठा कर साफ करने रसोई मे चली गई। जब वह रसोई का सारा काम खत्म कर के सतीश के कपडे प्रैस करने लगी। जब शालिनी सतीश के कपडे प्रैस कर रही थी तब सतीश आया और शालिनी को घसिटते हुए बाह आँगन मे ले आया और बोला उठा अपने कपडे और जल्दी से पैक कर ले तुझे तेरे बाप के घर छोड कर आता हुँ। शालिनी डर के मारे रोने लगी। अब सतीश की बहन ने सतीश को समझया ऐसे करेगा तो इसका बाप तलाक दिला देगा और दहेज सारा वापस लौटाना पडेगा। इसे युक्ति लगा कर निकलना पडेगा। अभी रुक थोडा समय मौका देख कर इसे निकालेगे तब सब इसे ही गलत कहेगे।
अब सतीश के दोस्त अपनी पत्नि सहित मिलने आया उसके सामने सभी नायकिय ठंग से पेश आए शालिनी से भी सतीश बहुत प्यार से बोलने लगा। सतीश शालिनी को कहने लगा देख भग्यवान तुझसे मिलने को कौन आए है। प्यार से शालिनी का हाथ पकड कर उसे कमरे मे लाया और उसे अपने मित्र फैमिली के पास बैठाया। सतीश अपनी माँ से बोला मम्मी इन सब के लिए नास्ता ले आओ। सब नाटक चलता रहाँ जब तक सतीश के मित्र घर पर रहे। अब वह दिन आया जीस दिन की टिकिट थी वैष्णो देवी के मंदिर जाने की। सतीश के मित्र भी अपनी पत्नि को संग ले आए थे संग जाने के लिए। सतीश-शालिनी और सतीश के मित्रगण सब निकले यात्रा पर।
यात्रा मे सबने दर्शन किए वापस लौटते समय कुछ दुर चलते ही सतीश के मित्र कहने लगे हम आगे चलते है तुम आराम से आते रहना क्योकि शालिनी के पाव मे सूजन आ गई थी। उससे चलना मुश्किल हो रहाँ था वह धिरे-धिरे चल रही थी। अभी दो चार कदम ही उसके मित्र चले होंगे तभी सतीश भी शालिनी को वहाँ बैठा कर कहने लगा तुम यहाँ बैठो मै अभी आता हुँ मुझे लग रहाँ है कि दोस्त को चक्कर आ गया है उसे सम्भाल कर आता हुँ तु कही मत जाना यही बैठी रहना। सुबह 5-6 बजे की बैठी शालिनी 10 बज गए इतने घण्टे बित गए मगर सतीश नही लौटा था। अब शालिनी को डर लगने लगा और वह डर कर वही बैठी-बैठी रोने लगी आने जाने वाले सभी लोग शालिनी को देख रहे थे की क्यो रो रही है। फिर एक महिला ने हिम्मत कर के शालिनी से पुछा बेटी रो क्यो रही है क्या तेरे साथ वाले तुझ से बिछड गए है।
शालिनी ने रोते-रोते बोला हाँ मेरे पति मुझे यहाँ बैठा कर गए थे बोल कर गए थे यही बैठी रहना कही जाना मत मै उनके इंतजार मे यही बैठी हुँ पर वो अभी तक लौटे नही है और मेरे पास घर वापस जाने के लिए रुपये भी नही है। अब मै कहाँ जाऊगी जीस होटल मे ठहरे थे उसका अता-पता भी नही मालुम। फिर उस महिला ने हिम्मत बंधाई और बोली बेटी डर मत यह माता का दरबार है।यहाँ किसी का बुरा नही होता। हो सकता है तुम्हारे पति सांझी छत मे कमरे मे आराम कर रहे होंगे। सांझी छत यहाँ से थोडी ही दुरी पर है। वहाँ जाकर तुम जो कमरे बने है उनमे देखना माता रानी की कृपा से तुम्हे तुम्हारे पति मिल जाएगे। शालिनी ने हिम्मत करी और धिरे-धिरे सांझी छत की तरफ चल पडी।
कैसे तैसे करके वह साझी छत पहुचीं वहाँ वह थोडी देर बैठ कर आराम किया और हर आने जाने वाले को गौर से देखने लगी कही शायद उसके पति तो नही हो इन से। कुछ आराम करके वह सांझी छत पर बने कमरे मे सब कमरो मे झांक झांकर देखने लगी पर उसे ना तो सतीश कही दिखा था ना ही उसके मित्र फैमली ही नजर आई थी। अब शालिनी बेचारी रोती रोती आगे चलने लगी और सोचने लगी अब कहाँ जाऊ घर कैसे पहुचु। फिर उसको याद आया पापा के दिए गहने तो उसने पहन रखे है इन्हे बेच कर घर लौट जाऊगी।अब उसको चलते कुछ समय ही हुआ होगा की उसे एक लडकी जो लगभल 18-20 साल की होगी। वह शालिनी के संग-संग चलने लगी। चलते-चलते दोनो ने एक दुसरे को देखा और बाते करने लगे।शालिनी ने उससे पुछा तुम अकेले कैसे आई तुम्हारे संग और कोई नही तब वह लडकी बोली है ना मेरा सारा परिवार है मेरे संग।
फिर शालिनी ने पुछा तो तुम अकेली कैसे आई। तब वह लडकी बोली मेरे मम्मी पापा बईया भाभी सब लगर खाने गए हुए है अर्धकुवारी मे तो शालिनी ने पुछा फिर तुम नही गई खाने लंगर वह लडकी बोली मेने तो कभी खा लिया था लंगर जब बना था तभी खा लिया था। पर लाईन बहुत बडी थी इस लिए भईया भाभी का नम्बर नही आया वे अब खा कर फिर आ जाएगे। ऐसे बात करते-करते शालिनी और वह लडकी कटरा के नजदीक पहुच गए तब शालिनी ने उस लडकी से पुछा तुम अब कहाँ जोओगी तब वह बोली मै होटल मे जाऊगू शालिनी ने पुछा तुम्हे तुम्हारे होटल का ध्यान है क्या वह बोली हाँ मुझे यहाँ के सभी होटल की जानकारी है। शालिनी उससे कहने लगी मुझे तो उस होटल का नाम नही पता जहाँ मुझे जाना है।
तब वह लडकी बोली तुम चिन्ता मत करो माता रानी है ना तुम्हारे साथ तुम उनके दर्शन करके आई हो जरुर तुम अपने होटल पहुच जाओगी इतना कहते ही वह लडकी एक गली की तरफ इशारा करके बोली देखो तुम्हारा होटल तो आ गया। शालिनी को तो पहचान मे नही आ रहाँ था इस लिए वह बोली मुझे तो समझ नही आ रहाँ कौन सा होटल है। तब वह लडकी बोली तुम्हारा होडल वो सामने दो तीन होटल छोड कर जो सामने दिख रहाँ वही है। शालिनी थकी हुई थी उसे इतना भी ध्यान नही रहाँ कि एक अंजान लडकी को ठीक उसके होटल और उसके कमरे के बारे मे सही ज्ञान कैसे हुआ। सालिनी थोडा आगे गई उसे समझ आ गया अपना होटल। फिर उसकी समझ मे कुछ आया उस लडकी की तरफ देखा पता नही वह लडकी कहाँ गायब हो गई।
शालिनी ने होटल वाले से कमरे की चाबी मांगी होटल वाले ने कहाँ ऊपर आपके कमरे मे गेस्ट नहाने धोने के लिए बेजे है आपका कमरा खुला है चले जाओ वहा। वहाँ पहुच शालिनी ने देखा उस कमरे मे कुछ लोग तैयार हो रहे थे। काफी समय लगा उनको तैयार हो कर नास्ता पानी करने मे। जब वे सब चले गए तो शालिनी कमरे को बेद करके सो गई रोते-रोते उसे कब नींद आ गई पता ही नही चला। शाम को एक लडके ने आकर जोर से दरवाजा खटखटाया बोला मेडम आपसे कोई मिलने आया है। शालिनी ने सोचा किसी और का मेहमान होगा। उससे मिलने कौन आएगा। तभी कमरे की खिडकी से सतीश ने झांकते हुए कहाँ दरवाजा खोल। शालिनी खडी होकर दरवाजा खो कर आई। तब सतीश बैड पर आकर लेट गया। दोनो चुप-चाप लेटे रहे। फिर एक महिला आई और शालिनी से बात करने लगी।
अब होटल वाला लडका आया और बोला साहब कमरा खाली करना है तो अभी कर दो हमारे कस्टमर आए हुए है। सतीश ने कुछ दुरी पर एक कमरा देख कर वहाँ सिफ्ट कर लिया। रात को शालिनी और सतीश खाना खाने गए और लौट कर कमरे मे आ कर सो गए। सुबह सतीश के मित्र आए फिर सब मिल कर बाजार गए खाना खाया थोडा बहुत सामान खरीदा। रात को रेलगाडी पर सवार हो वापस घर लौट गए। अब वैष्णो देवी से लौटे ुन्हे कुछ ही दिन हुए थे कि बहुत बडी लडाई हुई। जीसमे शालिनी के परिवार वालो को बुलाया गया और योजना के तहत जो भी पहले से सोच कर कर पलानिंग के अनुसार शालिनी की ना जाने क्या-क्या कमियाँ बताई जाने लगी। शालिनी को घर से निकालने की पुरी तैयारी थी। शालिनी के भईया, मौसी,चाचा सब आए हुए थे।
शालिनी को एक कमरे मे बैठा कर उसके रिस्तेदारो को दुसरे कमरे मे ले जाकर मनगठन्त बाले बताने लगे। मशलन शालिनी ने यह किया-शालिनी ने वो किया। तब सतीश शालिनी को बुला कर दुर एक कमरे मे ले गया वहाँ पिछे-पिछे सतीश के पिता भी आए और कमरे मे आ कर बोले। तेरे शरीर पर जीतने भी गहने है तब उतार कर यहाँ मेज पर रख दे पर शालिनी कहने लगी क्यो कोई बात हुई है क्या इतने मे सतीश गुस्से से शालिनी से बोला तेरे को एक बार बोला समझ नही आता चुप-चाप रख दे तेरे सारे गपने उतार कर तब शालिनी ने वे गहने उतार कर मेज पर रख दिए पर शालिनी को यह समझ नही ाया क्यो उतवाए गहने जबकि ये सारे गहने शालिनी के पिता ने दिए थे शालिनी को।
मगर शालिनी ने उनके कहने पर सब गहने रख दिए और सतीश के पिता ले जाकर वह गहने शालिनी के परिवार वालो के सामने रख कर बोले यह देखो अब आप कुध ही देख लो कितनी बतमिज है तुम्हे बेटी मेरे मुँह पर गहने मार कर फैंक दिए फर शालिनी के चाचा को कुछ गडबड लगा इस लिए जब शालिनी के ससुर उठ कर उस कमरे मे आए थे तो वे भी पिछे आए और कमरे के बाहर खडे उन्होमे सू देखा सुना था इस लिए वे बातो मे नही आए। फिर दिन भर की बहस के बाद शालिनी के रिस्तेदारो ने कहाँ ठीक है अभी तुम्हारे घर का माहौल गर्माया हुआ है। इस लिए शालिनी को कुछ दिनो के लिए पीहर भेज दो। अब शालिनी को भईया पीहर ले गए। वहाँ शालिनी के भईया भाभी शालिनी के जाने के बाद भाभी के पीहर चले गए क्योकि शालिनी की भाभी के डीलिवरी होने वाली थी और वह अपनी माँ के पास जाकर डीलवरी करवाना चाहती थी।
इधर शालिनी की तबीयत एकदम से खराब हो गई थी आँखे बुरी तरह से सूज गई थी पुरे शरीर मे सूजन होने लगी थी तो शालिनी के पिता ने उसे अस्पताल मे ले गए। वहाँ डाॅक्टर ने उसका चेकअप किया तो वी.पी हाई था उसे वी. पी की दवाई दी। तब अगले दिन शालिनी की बडी दीदी ( कजन ) आई और शालिनी को देखते ही हपचान गई की यह खुस कबरी है और उन्होने दवाई बंद करवा दी। इसके 3-4 दिन बाद ही सतीश वहाँ आया तो उसे इस खुशखबरी बताई। तब सतीश कहता अभी घर नही जाना कुछ दिन और यही रहो जब पापा लेने भेजेगे तब लेने आऊगा अभी तो किसी को घर मे बता कर नही आया। सतीश के एक दोस्त के रिस्तेदार के यहाँ मिलने आए थे सतीश और उसका दोस्त इस लिए वह घर आया था।
अगले दिन सतीश वापस लौट गया। शालिनी के भतीजा हुआ उसकी खुशी मे पार्टी रखी तब सतीश भी आया था और सबके समझाने पर शालिनी को संग ले गया था। अब सतीश के माता-पिता को एक काम से रिस्तेदारी मे जाना था तो वह 8-10 दिन के लिए चले गए मगर वापस आने के 1-2 दिन बाद ही वही लडाई झगडा शुरु कर दिया और सतीश से कहाँ इसेसे छोड कर आ। सतीश उनके कहने पर छोडने चला गया। इस तरह शालिनी की डिलीवरी होने तक वही रखा शालिनी ने कई बार फोन भी किया वापस जाने के लिए मगर हर बार सतीश टाल देता ना तो सतीश कुध फोन करता था ना ही लेने आता ता। शालिनी फोन करती कभी तो बस हाँ हुँ करके काट देता था।
अब वह दिन आया जब शालिनी ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया तब सतीश आया था। और उसी दिन बेटा पैदा होते ही वापस लौट गया उसके बाद बहुत फोन करके शालिनी की भाभी ने सतीश को बुलाया। तब सतीश डाॅक्टर के छुटी देते ही शालिनी को संग ले आया। सबके समझाने पर भी नही माना बोला तुम्हारे फोन आते रहेगे छोड कर गया तो इस लिए साथ ले कर जाऊगा। सतीश शालिनी को लेकर आया ते सही मगर उसके माता-पिता ने शालिनी के सारे सामान को उठा कर बाहर भेंकना शुरु कर दिया बोलने लगे इस क्यो लाया वापस इसको छोड कर आ। यह हमारा घर है यहाँ इसे हम रहने नही देंगे। सतीश ने बहुत समझाया कि मै इसके परिवार बोलो से जीद करके संग लाया हुँ ऐसे मे वापस अभी ही छोड आऊ कुछ दिन रुको मै खुद छोड आऊगा इसे हमेशा के लिए।
मै खुद इससे पिछा छुडाना चाहता हुँ मुझे नही रखना इससे कोई रिस्ता। यह सब बाते शालिनी सुन रही थी उसे बहुत दुख हुआ और मन मे ठान लिया बहुत हुआ आगे झुकते क्या अकेले मुझे ही गृहस्थी की जरुरत है सतीश को नही है। पर बोली कि मुझे अब यहाँ नही रहना। इस लिए सतीश को पडौस दोस्तो सबने कहाँ तु किराए के मकान मे रख दे इसे। फिर सतीश एक छोटा सा कमरा देख कर ले गया शालिनी को वहाँ।यह सतीश की एक चाल थी कोई शालिनी से प्यार नही था। पर शालिनी हर तरह से समझोता कर लेती थी ुसे तो अपना घर बसाना था चुप-चाप मान गई। अब उस किराये के मकान के पडौसी देखते इतने छोटे बच्चे और अभी तो इसका शरीर भी काम करने लायक नही सास-ससुर ने घर से निकाल दिया। बेचारी शालिनी हिम्मत करके बच्चे को गोद मे लेकर खाना बनाती। अभी बेटा मात्र 25 दिन का हुआ था।
तब एक दिन सतीश की गर्लपऐंड का भाई आया सतीश से मिलने। वह आया क्या उसे बुलाया गया था सतीश को समझाने की इसे छोड आ और सतीश का विवाह वह कही और कर देगे। जब वह सतीश की गर्लफैंड का भाई आया तो सतीश उसे दुर ले गया जहाँ से शालिनी को कुछ सुनाई ना पडे। बहुत बाते हुई दोनो मे पुरी रात निकल गई बातो मे उनकी। जब शालिनी चाए नास्ता देने गई तो शालिनी के कानो मे उनकी बाते पडी जीसमे सतीश उस से शालिनी को बहुत बुरी बता रहाँ था। कह रहाँ था बेकार कचरा गले पड गया। अब पिछा छुडाने की कोशिश कर रहे है कमिनी पिछा ही नही छोड रही। इसका बाप बडा आदमी है इस लिए सोच रहे है नही तो कभी का धका मार कर इसे निकाल देता अपने जीवन से। फिर वो दोस्त बोला इसी लिए तो तेरे मम्मी पापा ने मेरी बहन को फोन किया था कि वो आक सतीश को समझाए। सतीश उसकी कोई बात नही टालता जो वह कहती है वही करता है।
फिर मेरी बहन के कहने पर ही मै आया हुँ मुझे उसने ही भेजा है। अब शालिनी को कुछ-कुछ समझ आने लगा था कि क्यो सतीश उससे दुर भागहता है क्यो सब मिल कर शालिनी पर झुठा आरोप लगाते है। पर बेचारी करती तो क्या करती उसके माता पिता ने यही संस्कार दिए थे कि लडकी मायके से डोली मे बैठ कर जाती है और जब उसकी अर्थी उठती है तभी वह ससुराल से विदा होती है। मगर ये कैसे लोग है सभी कोई संस्कार नही कोई धर्म नही सब अपनी मनमानी करते है। शालिनी का है कौन उसकी बात सुने क्योकि माँ तो उसकी कभी की दुनिया छोड कर चली गई। कोई भी औरत अपनी माँ से ही दुख सुख बांट सकती है। दुसरा कौन है तो उसके दुख सुख बांटे। वह कहे भी तो किसे कहे। बेचारी हमेशा चुप रहती। जब सतीश उसे बुरी तरह मारता तो रो लेती। सतीश उसे बहुत बुरी तरह पेश आता उसके बाल पकडकर दिवार से उसका सिर भिडा देता। जूतो से पिटता।
इतना मारता की कई-कई दिनो तक उसके शरीर पर जूतो के निशान बने रहते निल जम जाती शरीर पर सब चुप चाप सहने के अलावा क्या करती। सतीश इस से भी नही चुकता उसे बालो से पकड कर घसिटते हुए गली मे ले जाता घर से बाहर लात मार कर फेंक देता और कहता निकल जा मेरे घर से।पर शालिनी मार खा कर भी घर नही छोडती। अपना पत्नि धर्म मर कर भी निभाने के लिए विवस थी। कोई भी नही चाहता था कि शालिनी वापस पीहर आ जाए तलाक हो जाए।इस लिए हर जुर्म सहती रोती चिक्खती चिलाती। कभी आस-पडौस के लोग छुडाने आते तो सतीश उस पर इलजाम लगाते पुरुष होता तो कहता यह रंडी इसके साथ नाजायज सम्बंध रखती है इस लिए यह तो छुडाने आएगा।महिला होती तो कहता इसे तुही ले जा अपने घर। ऐसी रोज की लडाई मार पिट के चलते बच्चे बडा होता रहाँ। बच्चे के मन मे भी जहर घोला जाता तेरी माँ बुरी है इसके साथ मत रहाँ कर नही तो तेरा जीवन खराब कर देगी।
डायन है खा जाएगी तुझे अब बच्चे के मन मे भी माँ से घृणा पैदा होने लगी थी। पर विधाता के लेख बेटे को एक असाध्य रोग ने घेर लिया पिता के बुरे कर्मो को भोगने के लिए। फिर कोई भी उस बच्चे को देखने नही आया समभालना तो बहुत दुर की बात है। माँ तो माँ होती है .माँ अपने लाल के लिए भागती डाॅक्टरो के चक्कर लगाती दवाई की लाईन मे घण्टो भुखी प्यासी कडी रहती।हर तरह से कोशिश करती की बच्चा बच जाए। माँ की मेहनत रंग लाई कुछ भगवान ने उसकी सुनी फिर वह बच्चा उस असाध्य बीमारी से बाहर आने लगा। तब उसे अहसास हुआ जीस माँ को मै दुसरो के कहने पर गलत समझता था वही मेरे लिे कितना भागी है। अब वह माँ की दिल से पुजा करने लगा।
अब उसे माँ से दुर रहना बहुत बुरा लगने लगा। सतीश की छुपी दास्तान सब धिरे-धिरे सबके सामने आने लगी सब को पता चलने लगा कि सतीश शालिनी को क्यो मारता पिटता था। सतीश ने अपनी गर्लफैंड से रिलेस्न बनाए हुए थे उसकी वजह से वह शालिनी को तंग करता थाय़ आखिर वह दिन आ ही गया जब सतीश की गर्लफैंड ने शादी के लिेए मजबूर कर दिया। अब सतीश ने दवाईयो का सहारा लिया शालिनी को मारने के लिए वह उसके खाने पिने के सामान मे चोरी से कैमिकल मिलाने लगा उसका असर शालिनी पर होने लगा शालिनी पुरा दिन बेहोश रहती उसे होश ही नही रहता क्या समय हो गया। इससे भी शालिनी नही मरी तो अब उसने शालिनी को तलाक के लिए तंग करना शुरु कर दिया घर सामान नही लाता ना ही कोई खर्चा पानी घर पर देता हार कर शालिनी को तलाक के लिए कदम उठाने पडे।
अब शालिनी और सतीश के रिस्ते की बलि का समय आ गया जब शालिनी कार्ट मे पहुची। सतीश बहुत खुश था उसको लगा अब तलाक हो जाएगा तो उसे रोज चोरी-चोरी रात बेरात अपनी गर्लफैंड से मिलने नही जाना पडेगा अब दोनो शादी के बंधन मे बंध जाएगे। इधर शालिनी भी अब हार चुकी थी उसकी हिम्मतभी टुट चुकी थी क्योकि वह अकेली संघर्ष कर रही थी। उसे लगता था शायद कभी सतीश के मन मे उसके लिए प्यार जाग जाएगा। तब वह खुद पछताएगा मगर यह नही जानती थी कि सतीश का प्यार वो नही उसकी गर्लफैंड है।
इस कहानी का अंत मुझे समझ नही आ रहाँ शालिनी का तलाक के बाद जीवन कैसे गुजरेगा क्या होगा तलाक तो हो ही गया समझो पर अंत समझ नही आया इस लिए अभी यह कहानी अंतहीन है।
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