संवाददाता धर्मेंद्र सिकरवार
- हफ्ते में सिर्फ एक या दो दिन खुलते हैं आदिवासी गांवों के शासकीय विद्यालय
मुरैना। पहाड़गढ़ जनपद पंचायत के अंतर्गत ग्रामीण आदिवासी क्षेत्र के स्कूलों की हालत दयनीय है। स्कूल बिल्डिंग देखरेख के अभाव में जीर्णशीर्ण हो रही है। विद्यालय में शिक्षक पढ़ाने नहीं जाते हैं इसका कारण है कि पहाड़गढ़ से तकरीबन 25 किलोमीटर दूरी पर जंगल क्षेत्र में प्राइमरी एवं मिडिल स्कूल हैं। इसलिए शिक्षक हफ्ते में एक या दो दिन ही जाते हैं और स्कूल में रजिस्टर हाजिरी भरकर आ वापस आ जाते हैं। ग्रामीण आदिवासी गांव वालों का कहना है कि यहां कोई मास्टर एक, दो दिन आता है और बैठकें तक नहीं ले रहे। इसके अलावा आदिवासी क्षेत्र के इस स्कूल में बीआरसी सहित शिक्षा विभाग का कोई भी अधिकारी निरीक्षण करने नहीं आता है परिणामस्वरूप शिक्षकों की लापरवाही ज्यों की त्यों है। बीआरएसी कैलारस मुख्यालय पर भी कम ही देखने को मिलते हैं। एक तरफ सरकार आदिवासियों के विकास को लेकर नई नई योजनाएं और घोषणाएं करती है लेकिन जमीनी हकीकत है कि आदिवासी क्षेत्र के शासकीय स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर हैं और शिक्षकों की लापरवाही भी झेल रहे हैं। धोबिन, दबरा, अमोही, जयतौली सहित कई गांव ऐसे हैं जहां विद्यालय हफ्ते में एक या दो दिन खुलता है लेकिन बीआरसी पहाड़गढ़ इन स्कूलों का निरीक्षण करने की जहमत नहीं उठाते है। ताज्जुब की बात तो यह है कि जब ये स्कूल बंद रहते हैं तो खाने बनाने वाले समूहों का भुगतान कैसे हो जाता है जबकि स्कूलों में खाद्यान्न योजना के नाम पर सिर्फ कागजों में पूर्ति हो रही है। आदिवासी क्षेत्र के शासकीय स्कूलों में शासन की लापरवाही के चलते विद्यालय नहीं खुलते हैं परिणामस्वरूप आदिवासी ग्रामीणों के बच्चे पढ़ाई से वंचित हो रहे हैं।
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